The Value of Education, The Gift of Effort | गरीबी की मार

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By Nanhe Kisse Anek


A Story on the Value of Education and the Struggles of Poverty in Hindi

परिवार का परिचय

यह कहानी एक गरीब परिवार की है, जिसमें माता पिता और उनके 2 बेटे रहते थे। बड़े बेटे का नाम रवि और छोटे का नमन था। नमन सातवीं और रवि दसवीं कक्षा में पढ़ता था। बच्चों के पिता अपने दो भाइयों के साथ एक दुकान चलाते थे। सभी सयुक्त परिवार में रहते थे। पिता जो भी कमाते वह सभी अपने माता पिता को दे देते थे। वह अपनी अलग से कोई बचत नही करते थे। शायद उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं था कि कल को जब उनके बच्चे उच्च शिक्षा के लिए दाखिला लेंगे तो उन्हें पैसों की सख्त जरूरत पड़ेगी।

दिन बीतते चले गए। समय आया जब पिता को अलग कर दिया गया, कि वह अब अपने परिवार की जिम्मेदारी अपने आप उठाए। दादा जी ने कहा, “मैं कब तक सबका भार उठाऊंगा बच्चों की स्कूल की फीस, घर के खर्चे और तुम्हारे 2 भाई और है मुझे उन्हें भी देखना है। नमन के पिता को एक धक्का सा लगा कि वह अचानक से सब कैसे मैनेज करेंगे उनके पास तो कोई जमा पूंजी भी नही है। नमन की मां ने कहा, “इसलिए आपको हमेशा समझाती थी, कि आप भी थोड़ी सेविंग किया करो, अब कैसे क्या होगा?”

माता-पिता पड़े बड़ी दुविधा में 

नमन के पिता एक प्राइवेट नौकरी करने लगे। उनकी सैलरी सिर्फ 9-10 हजार ही थी। पिता को बहुत सारी मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा था। वह बस दो टाइम के खाने का ही बंदोबस्त कर पा रहे थे। नमन और रवि की स्कूल, ट्यूशन फीस अरेंज करनी मुश्किल हो रही थी। इन सबके चलते नमन के भाई को अपने ही घर वालो से चीड़ होने लगी थी । वह अपने पापा की गरीबी को न समझते हुए सिर्फ अपने पिता को दोष देता रहता, कि सबके पिता अपने बच्चों के लिए न जाने क्या से क्या करते है और एक हमारे पिता है, जो हमारे स्कूल की फीस तक नही दे पा रहे हैं। पिता को अंदर ही अंदर चिंता सताती थी कि वह कैसे घर खर्च चलायेंगे। वह अपने परिवार का अच्छे से गुजारा नहीं कर पा रहे थे। थोड़ी सी तनख्वा, घर के खर्चों में ही निकल जाती थी। नमन और उसके भाई की फीस इधर-उधर से उधार लेकर दिया करते थे। दिन ऐसे ही बीतते चले गए। बड़े भाई का कॉलेज में एडमिशन होना था और दूसरी तरफ नमन की दसवीं क्लास की 9 महीनों से फीस जमा नहीं हुई थी। माता-पिता बड़ी मुसीबत में पड़ गए कि अब क्या करे? दोनो आपस में बात कर रहे थे, “अगर कॉलेज में एडमिशन नही कराया तो रवि का 1 साल खराब हो जायेगा। नमन की इतने महीनों की फीस पेंडिंग है। कहा से लाए इतने पैसे?” 

मां ने एक एक करके बेचे अपने गहने 

मां ने बड़े बेटे की फीस भरने के लिए अपने कान के झुमके गिरवी रख दिए। रवि को अपने पिता से इतनी चीड़ हो गई थी कि उसने अपने पिता से बोलना ही छोड़ दिया। वह अपने पिता की गरीबी व बेबसी को नहीं समझता। दूसरी तरफ नमन को रोज क्लॉस मैं खड़ा कर के बोला जाता था कि कल स्कूल में फीस लेकर आना वरना मत आना। नमन को अपनी बहुत बेइज्जती महसूस होती थी। घर आकर नमन रोने लगा कि अगर मेरी स्कूल फीस जमा करेंगे तो ही मैं स्कूल जाऊंगा। मां की आंखे नम थी। उन्होंने अपनी सोने की चैन बेच दी और जाकर नमन की फीस भर आई।

अब रवि का कॉलेज पूरा हो चुका था। नमन ने भी 12वी कक्षा पास कर ली। नमन यार दोस्तों के चक्कर मैं ज्यादा रहने लगा। उसका पढ़ाई से दिमाग भटक चुका था। थोड़े दिनों बाद रवि की नौकरी लग गई। सब बहुत खुश थे। सोच रहे थे अब हमारे दिन सुधर जायेंगे। सब रवि की पहली सैलरी का इंतजार कर रहे थे। “मम्मी सोच रही थी जिनकी उधार ली थी थोड़ा उन्हें चुका दूंगी।” पापा सोच रहे थे कि अब नमन की आगे की पढ़ाई की चिंता नही होगी उसका भाई संभाल लेगा।

नौकरी लगने पर रवि का व्यवहार 

पिता की छाती खुशी से फूल रही थी कि मेरा बेटा, “कंधे से कंधा मिलाकर मेरा हाथ बटाएंगा। जब सैलरी आई तो रवि का रवैया ही अलग था। उसने कहा, “मैंने कोई ठेका नही लिया कि मैं सबकी जिम्मेदारी लूंगा। मुझे अपना भी देखना है”। वह बस घर खर्च में थोड़े पैसे देता था, लेकिन दुगुनी बाते सुनाता था। वह बड़ा बेटा या भाई होने की जिम्मेदारियों को नही समझता था। मां बाप को बहुत दुःख होता था लेकिन उनकी भी अपनी मजूबरी थी कि उन्हें रवि की इतनी बाते सुननी पड़ती थी। बेटे की नौकरी लगने पर भी वे गरीबी से उभरे नही पाए। रवि ने एक काम अच्छा करा था कि उसकी उच्च शिक्षा के लिए जो पैसे उसके माता पिता ने उधार लिए थे उसने जॉब लगने पर उन्हें चुका दिया था। 

नमन का फ्रेंड सर्कल बिल्कुल भी अच्छा नही था। जब बड़े रवि को इसके बारे में पता चला तो उसने नमन को खूब डाटा और बोला, “ऐसे गांव के लड़को के साथ रहेगा तो जिंदगी भर इधर से उधर धक्के खायेगा”। रवि ने नमन को कहा कि मैं तुम्हें कोचिंग कराऊंगा। नमन खुश हो गया। जैसा रवि कहता वह वैसा करता। वह नमन पर हुक्म चलाता रहता था। जब रवि से कोचिंग की बात करी तो उसने बात को टाल मटोल कर दिया और कहा कि पहले चेक करो कौन सा इंस्टिट्यूट अच्छा है फिर उसी हिसाब से तुम्हारा एडमिशन होगा। 

एक दिन की बात है। रवि ने नमन से मेडिकल स्टोर से कुछ दवाई लाने को कहा। नमन ले आया लेकिन उसके भाई ने एक दवा बदलवा दी थी। नमन चुपचाप बदल आया। वह फिर से नमन को दवाई बदलवाने के लिए भेजने लगा तो नमन ने कहा, “कोई बार-बार थोड़ी बदलेगा। नमन के माता पिता भी वही थे। बड़े भाई को गुस्सा आया और वह नमन को खरी खोटी सुनाने लगा और बोला करा लेना अपनी कोचिंग खुद ही। पिता ने नमन को समझाया, “बेटा तू उसकी बात मान लिया कर, वह बड़ा है तुमसे। नमन ने कहा, “पापा बात सही भी तो होनी चाहिए।” पिता ने कहा, “नमन बेटा कुछ इंसान ऐसे होते है कि जब उनके पास पैसे आ जाते है तो उसका घमंड आसमान छूने लगता है।”

थोड़े दिनों बाद रवि, नमन को पढ़ने के लिए अपने कुछ नोट्स दे देता है और कहता है, “अभी इनसे काम चला लो। वैसे भी सेल्फ स्टडी करनी पड़ती है।” नमन को थोड़ा थोड़ा समझ आने लगा था कि उसका भाई उसे पागल बना रहा है वह उसे कोई कोचिंग नही कराने वाला। नमन भी अपने पिता के लिए सोचने लगा था कि हमारे पापा हमारे लिए कुछ नहीं करते। सबके पापा बच्चों को सिर्फ पढ़ने के लिए बोलते है बाकि सब खुद संभाल लेते है। यहां एक हम है कि पढ़ने के अलावा दुनिया भर की टेंशन है। घर के हालात ऐसे कि कहीं राशन की उधार तो कहीं दूध वाले की। जब पापा की सैलरी आती है तो वो उधार चुकाने में ही निकल जाती है, फिर नई उधार शुरू हो जाती है। हे भगवान ! ऐसा कहकर नमन सो जाता है।

नमन का रुला देने वाला संघर्ष 

नमन के पिता ने कुछ पैसे ब्याज पर लेकर नमन की थोड़ी फीस भर दी ताकि वो अपनी क्लास स्टार्ट कर सके। अब रोज बाहर आने जाने का खर्चा, कपड़े ये सब कर पाना बड़ा मुश्किल हो रहा था। पिता भी उस पर चिल्ला पड़ते थे कि इतनी सी तनख्वाह में, मैं क्या क्या करूं? वह रवि का पुराना बैग और कपड़े इस्तेमाल करता था।

एक बार की बात है, नमन और उसके भाई के बीच किसी बात को लेकर बहस हो गई, उसका भाई नमन को मारने वाला था कि उनके पिता बीच में आ गए। रवि ने उसी वक्त नमन से अपना बैग छीन लिया और कपड़े उतरवा लिए जो नमन ने पहने हुए थे। इस घटना से नमन के ऊपर बहुत ही गहरा असर पड़ा। वह रोने लगा। मां-बाप की कोई सुनता नहीं था। सब अपने आप को बड़ा और समझदार समझते थे। मां ने नमन को दो जोड़ी कपड़े और एक नया बैग दिलाया। 

value of education

नमन ने पार्ट टाइम जॉब स्टार्ट कर दी थी। वह सुबह कोचिंग जाता और शाम को जॉब करता। पढ़ाई और जॉब दोनों कर पाना बड़ा मुश्किल हो रहा था। उसे ये बात समझ आ गई थी कि अगर वह जॉब नहीं करेगा तो आगे कि फीस कैसे भरेगा। वह थोड़ा बहुत अपने पिता के हालात समझने लगा था। उसने दिन रात एक कर दिया। सर्दियों में कभी कभी तो उसे रात के 12 बजे जाते थे। उसके पास अपना कोई साधन नहीं था। इस तरह नमन ने बहुत मेहनत करी और जॉब के साथ-साथ अपनी कोचिंग पूरी करी। लेकिन अभी एक स्थाई नौकरी नही मिली थी। उसने लाइब्रेरी जाना स्टार्ट किया और वहा खूब पढ़ाई कि। फॉर्म भरता एग्जाम देता लेकिन अभी सफलता हाथ नहीं लगी थी। इन सबके बीच बड़े भाई की शादी हो चुकी थी।

थोड़े दिनों बाद नमन का एक एग्जाम क्लियर हो गया और उसकी नौकरी लग गई। उसने सबसे पहले अपनी पढ़ाई पर ली हुई उधारी को चुकाया। नमन के माता पिता बहुत खुश थे। थोड़े दिनों बाद नमन को लगने लगा की यह नौकरी उसके लायक नही है। उसने जॉब छोड़ने का फैसला लिया और अच्छी नौकरी के लिए फिर से पढ़ाई शुरू कर दी। एग्जाम के बाद एग्जाम दिए। उसको फिर पैसों की जरूरत पड़ी। माता पिता ने सोचा अब तो रवि जरूर मदद कर देगा। क्योंकि नमन अब इस लायक हो गया है कि वह जल्द ही उसके पैसे लौटा देगा। पिता रवि से पैसे की मदद मांगने लगें तो उसने साफ मना कर दिया की मेरे पास नही है। रवि घर की सारी जिम्मेदारियो को छोड़ कर अपनी पत्नी के साथ बाहर सैटल हो गया।

नमन पढ़ाई भी करता और जो फॉर्म निकलते तो एग्जाम भी देता। थोड़े दिनों बाद उसे एक साथ दो-दो ऑफर लेटर मिले जिसे देखकर नमन को बहुत खुशी हुई लेकिन पोस्टिंग दूसरे शहर में दूर होने के कारण वह उसे ज्वाइन नही करता। आखिरकार  कुछ दिनों बाद फिर एक जॉब लेटर आया जिसे देखकर नमन की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसने जॉब पर जाना शुरू कर दिया।

धीरे धीरे दिन बदलने लगे। घर मै खुशी का माहौल होने लगा। नमन ने पापा के साथ मिलकर घर की जिम्मेदारियों को संभाला। नमन ने अपने माता पिता को तीर्थ यात्रा पर भेजा। माता पिता ने नमन को बहुत सारा प्यार और आशीर्वाद दिया। 

 कहानी से सीख:

  1. हमे सेविंग जरूर करनी चाहिए। 
  2. शिक्षा के साथ अच्छे संस्कार भी होने जरूरी है। 
  3. हमे बड़ो की इज्जत करनी चाहिए और अपनी जिम्मेदारियों को समझना चाहिए।


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