Sher Kaise Bana Maa Durga Ki Sawari | शेर कैसे बना मां दुर्गा की सवारी?
दृश्य सूची
नवरात्रि के समय माता रानी का जागरण
नैना अपने माता-पिता के साथ नवरात्रि का पूजन कर रही थी। नवरात्रि के पावन मौके पर नैना के पड़ोस में ही माता रानी का जागरण था। नैना भी अपने माता-पिता के साथ जागरण में गई थी। वहां उसने पूरी श्रद्धा भाव से माता के भजन गाए। जागरण में मां दुर्गा की एक सुंदर झांकी आई। झांकी में उनकी सवारी सिंह भी आया। हालांकि शेर असली नहीं था, फिर भी नैना थोड़ी डर गई थी। उसने मम्मी से पूछा, “मम्मी शेर तो इतना खतरनाक जानवर होता है। मां दुर्गा ने शेर को कैसे अपनी सवारी बनाया।” मम्मी ने बताया, “नैना इसके पीछे एक पौराणिक कथा है, जिसमें बताया गया है, की कैसे शेर मां दुर्गा की सवारी बना?” नैना ने कहा, “मम्मी प्लीज मुझे सुनाओ ना वो कहानी।” मम्मी ने कहानी सुनाना शुरू किया ..
मां पार्वती की तपस्या और विवाह
मां पार्वती ने शिव जी को पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। माता पार्वती ने रेत का शिवलिंग बनाकर, खाने का त्याग कर सैकड़ों वर्षों तक घोर तपस्या की। माता पार्वती की निरंतर और कठोर तपस्या से शिव जी बहुत प्रभावित और प्रसन्न हुए। उन्होंने मां पार्वती को अपनी अर्धांगिनी स्वीकार किया। इसी दिन से हरतालिका तीज का त्यौहार मनाया जाने लगा। सभी देवताओं ने खुशी से पुष्पों की वर्षा की। मां पार्वती ने शिव जी के साथ कैलाश में निवास किया। घोर तपस्या के चलते माता पार्वती का चेहरा काला पड़ गया था।
गौरवर्ण के लिए घने जंगल में तप और शेर का आगमन
एक दिन कैलाश में भगवान शिव जी और पार्वती मां ऐसे ही बातचीत कर रहे थे। उसी दौरान हसीं-मज़ाक में भगवान शिव ने मां पार्वती को काली कह दिया था। यह बात मां को बुरी लग गई, और वे नाराज होकर कैलाश पर्वत से दूर घने जंगल में तपस्या करने के लिए चली गई। नैना ने कहा, “मम्मी मां पार्वती ने इतने सालो तक तप किया था, और फिर से तपस्या? मम्मी इस बार तो शिव जी बहुत जल्दी प्रसन्न हो गए होंगे!” मम्मी ने बताया, “नहीं बेटा ऐसा नहीं हुआ।” आगे सुनो..
अपने रंग रूप को प्राप्त करने के लिए मां पार्वती अपनी तपस्या में पूरी तरह से लीन हो गई थी। एक दिन जंगल में एक भूखा शेर घूमते-घूमते मां पार्वती के पास जा पहुंचा। उसकी नजर मां पार्वती पर पड़ी। मां पार्वती को अपना आहार बनाने के लिए शेर दहाड़ता हुआ जैसे ही मां पार्वती के समीप गया, वैसे ही मां के तेज से वह शेर वहीं स्थिर हो गया। नैना ने फिर मम्मी से पूछा, “मम्मी क्या मां को डर नहीं लगा? क्या शेर ने मां को चोट पहुंचाई?”
मम्मी ने मुस्कुराते हुए कहा, “उसने मां पार्वती को खाने के अनेकों प्रयास किए। परंतु वह मां के प्रकाशित तेज के कारण असफल रहा। मां को तप में लीन देखकर शेर वहीं मां के समीप बैठ गया। मां पार्वती के ममतामयी रूप को देख शेर अत्यधिक प्रभावित हुआ। उसने तपस्या के दौरान तप में लीन मां की रक्षा करी। कोई भी जंगली जानवर मां के पास आने की कोशिश करता था, तो वह अपनी दहाड़ से उन्हें डरा कर भगा देता था। जब से वह मां पार्वती की शरण में आया था, उसने किसी भी जीव की हत्या नहीं की। मां पार्वती को तपस्या करते-करते सालों बीत गए। शेर भी वहीं भूखा प्यासा मां की तपस्या करता रहा। मां के तप से खुश होकर भगवान शिव जी प्रकट हुए और मां पार्वती को गौरवर्ण यानी गोरा होने का वरदान दिया। वरदान मिलने के बाद मां पार्वती सरोवर में स्नान करने चली गयी। स्नान के बाद उनके शरीर से एक और देवी का जन्म हुआ, जो गौरी कहलाई। तभी से देवी पार्वती को मां गौरी भी कहा जाने लगा।
मां पार्वती से मिला शेर को वरदान
नहाने के बाद जब मां दोबारा वन में गई तो उनकी नज़र उसी शेर पर पड़ी जो वर्षों से मां की रक्षा और तपस्या में लीन था। मां शेर से प्रसन्न हुई और कहा कि जिस प्रकार मैंने इतने सालो तक शिव जी की तपस्या की उसी प्रकार तुमने भी पूरी भक्ति भाव से भूखे-प्यासे रहकर मेरी भक्ति और रक्षा की है। मैं तुम्हें वरदान देती हूं “तुम मेरा वाहन बनकर सदैव मेरे साथ रहोगे।” आज से लोग तुम्हें मेरे वाहन सोम नंदी के नाम से जानेंगे। आशीर्वाद मिलने के बाद माता शेर पर सवार हो गईं और तभी से उन्हें मां शेरावाली के रूप में भी पूजा जाने लगा।
नैना कहानी सुनकर बहुत खुश हुईं। उसने मम्मी की तारीफ करते हुए कहा, “मम्मी अगर आप कहानी ना सुनाती, तो मुझे कभी मां की महिमा के बारे में पता नहीं चलता। मां ने अपनी दया दृष्टि से शेर की हिंसक प्रवृत्ति को सरल एवं कोमल बना दिया।
।जय माता दी।
Jai Mata di 👣🙏