एक छोटे से गांव में मुन्नी अपने मम्मी पापा के साथ रहती थी। वो अपने मम्मी पापा की एकमात्र संतान थी, इसलिए वह उन्हें बहुत प्रिय थी। मुन्नी के पास ढेर सारे खिलौने थे, जिनके साथ खेल कर वह बहुत खुश रहती थी। एक दिन मुन्नी के पापा घर आते हैं और मुन्नी को आवाज लगाते हैं, “मुन्नी बेटा कहां हो तुम? देखो मैं तुम्हारे लिए क्या लाया हूँ?” पापा की आवाज सुनते ही मुन्नी खुशी से दौड़ती हुई पापा के पास जाती है और पूछती है पापा, ऐसा भी क्या लाये हो आप मेरे लिए। “बेटा मैं तुम्हारे लिए बहुत सारी मिठाइयाँ लाया हूँ क्योंकि कल रक्षा बंधन का त्योहार है।” इतना सुनते ही मुन्नी का चेहरा फीका पड़ जाता है और वह वहाँ से चली जाती है।
मुन्नी की मम्मी पापा समझ जाते हैं कि वो यहाँ से उदास होकर क्यों चली गई है। माँ मुन्नी को समझती है कि बेटा ऐसे दिल छोटा नहीं करते। देखना, एक दिन भगवान तुम्हारी जरूर सुनेंगे और तुम भी अपने भाई को राखी बांधोगी। मुन्नी खुशी से माँ की ओर देखती है और बोलती है, “सच में माँ?” “हाँ बेटा, अब ज्यादा सोचो मत। चलो चल कर सोते हैं।”
ऐसे ही कुछ महीने बीत जाते हैं और एक दिन मुन्नी अपने घर के पास वाले मंदिर में जाती है। वहाँ लड्डू गोपाल की एक छोटी सी मूर्ति होती है जिसे देखकर वो रोने लगती है और बड़ी मासूमियत से बोलती है, “लड्डू जी मेरा कोई भाई नहीं है जिसके साथ मैं खेल सकूं।” लड्डू गोपाल उसकी बात सुनकर मुस्कुराने लगते हैं। फिर लड्डू गोपाल खुद एक बच्चे का रूप धारण करके मुन्नी के पास जाते हैं और उसको चुप कराते हुए बोलते हैं, “दीदी देखो मैं आपके लिए लड्डू लाया हूँ।” मुन्नी उसकी ओर देखती है और कहती है कि तुम कौन हो। वो बच्चा बोलता है, “मैं गोपाल, आपका भाई।” मुन्नी कहती है, “लेकिन मेरा तो कोई भाई नहीं है।” तब गोपाल बोलता है, “मैं ही तो तुम्हारा भाई हूँ। मुझे लड्डू गोपाल ने बताया है कि तुम मुझे बुला रही थी। इसलिए मैं आ गया और अब से हम रोज साथ खेलेंगे, नाचेंगे और गाएँगे। हाँ, और इस बार आप मुझे राखी भी बांधेंगी।” इतना सुनते ही मुन्नी की खुशी का तो कोई ठिकाना ही नहीं रहा। मुन्नी इस तरह रोज मंदिर जाती है और गोपाल के साथ खूब मस्ती करती है।
कुछ ही दिनों बाद फिर रक्षाबंधन का त्योहार आता है और मुन्नी के माँ-पापा चिंतित हो जाते हैं कि इस बार मुन्नी को कैसे समझाएंगे? तभी मुन्नी आती है और बोलती है आज तो मैं अपने भाई को राखी बांधूंगी। ये-ये! बड़ा मज़ा आएगा। मुन्नी के माँ-पापा एक दूसरे की ओर आश्चर्य से देखते हैं और पूछते हैं, “बिटिया कौन है तुम्हारा भाई, जरा हमें भी मिलाओ अपने भाई से।” मुन्नी खुशी से बोलती है, “हाँ क्यों नहीं, चलो आज आप भी मेरे साथ मंदिर चलो। वही रहता है मेरा भाई, गोपाल।” मुन्नी रोज़ की तरह लड्डू गोपाल के सामने बैठ जाती है और आवाज लगाती है, “गोपाल, कहां हो तुम? देखो आज मम्मी पापा भी तुमसे मिलने आए हैं।” मुन्नी के माँ-पापा गोपाल को देख कर चौंक जाते हैं क्योंकि गोपाल का स्वरूप बिल्कुल लड्डू गोपाल जैसा था। तभी गोपाल, मुन्नी से राखी बंधवाता है और उसको लड्डू खिलाता है और उपहार भी देता है।
मुन्नी के माँ-पापा गोपाल से पूछते हैं कि बेटा तुम कौन हो और कहां रहते हो? गोपाल के कुछ बोलने से पहले मुन्नी कहती है, “गोपाल ने मुझे बताया कि उसके लड्डू जी ने मेरे पास भेजा है।” बस इतना सुनते ही वो समझ जाते हैं कि ये सब लड्डू गोपाल जी की लीला है और उनकी आँखों से खुशी के आंसू बहने लगते हैं। फिर वो हाथ जोड़कर भगवान का धन्यवाद करते हैं।
Ati sunder
🙏jai shree laddu gopal
👌👌👌 बहुत अच्छी कहानी है
Amazing story
Jai Ladu Gopal Ki