Jhansi Ki Rani Story in Hindi
दृश्य सूची
परिवार का परिचय
एक समय की बात है, एक छोटे से गांव में, एक खुशहाल परिवार रहता था। इस परिवार में एक 8 साल का बेटा राज और उसकी 6 साल की छोटी बहन प्रिया थी। उनके पिता एक ईमानदार और मेहनती आदमी थे, और उनकी माँ एक प्यारी गृहिणी थी। लेकिन परिवार में जो सबसे खास था, वह थी, उनकी दादी माँ। दादी माँ बहुत सरल और नरम स्वभाव की थी।
बच्चों ने की नई कहानी की जिद
रोजाना रात के समय राज और प्रिया दादी माँ के इर्द गिर्द बैठ जाते थे। उनकी एक आदत थी कि सोने से पहले दादी माँ से रोज एक कहानी सुनकर सोते थे। प्रिया ने कहा, “दादी माँ आज हमें कोई अलग तरह की कहानी सुना दो।” “बिटिया कौन सी कहानी सुनोगे बताओ?” ऐसा दादी ने पूछा। राज ने भी कहा, “हाँ दादी माँ आज एक बिल्कुल नई कहानी सुना दो जो हमने पहले कभी ना सुनी हो।”
दादी ने बोला, “अच्छा आज मेरे बच्चे बड़े उत्सुक है, नई कहानी सुनने के लिए।” हाँ दादी माँ अगर, आपने नहीं सुनाई तो आज हम सोएंगे ही नहीं। दादी माँ मुस्कुराईं, उनकी आंखों में एक अलग सी चमक थी। बच्चों में तुम्हें आज झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की कहानी सुनाऊंगी। बच्चे खुश हो गए।
दादी की जुबानी, रानी लक्ष्मीबाई की कहानी
बच्चों रानी लक्ष्मीबाई का असली नाम मणिकर्णिका था। सब उन्हें प्यार से मनु कहकर पुकारते थे। जब मनु 4 साल की थी, तो उनकी माँ का देहाँत हो गया था। उनके पिता ने ही उन्हें माता-पिता का प्यार दिया। मनु की रुचि को देखते हुए, उनके पिता ने मनु को पढ़ाई के साथ साथ घुड़सवारी, तलवारबाजी और तीरंदाजी भी सिखाई। वह कभी भी जंग के मैदान में उतरने से नहीं कतराई। महज 14 साल की उम्र में मनु की शादी झांसी के राजा गंगाधर राव से हो गई थी। तभी से मनु को लक्ष्मीबाई कहा जाने लगा। कुछ वर्ष बाद उनका एक बेटा हुआ, लेकिन कुछ महीनों बाद उसकी मृत्यु हो गई। राजा बीमार रहने लगे थे। उन्होंने अपने एक रिश्तेदार से बच्चा गोद ले लिया था। दुर्भाग्य से फिर राजा का देहाँत हो गया।
अंग्रेजो के खिलाफ लड़ी रानी लक्ष्मीबाई
उस वक्त भारत पर अंग्रेजों की हुकूमत थी। भारत का गवर्नर लॉर्ड डलहौजी था। लक्ष्मीबाई की खुद की संतान न होने के कारण, गवर्नर ने झांसी को खाली करने का फरमान जारी कर दिया था। स्वाभिमानी रानी ने अंग्रेजों की बात नहीं मानी और कहा, “मैं अपनी झांसी किसी को नही दूंगी।” अंग्रेजों ने झांसी पर कब्जा करने के लिए आक्रमण कर दिया था। लक्ष्मीबाई ने अपनी एक सेना तैयार करी जिसमें महिलाएं भी शामिल थी। प्रिया ने दादी माँ को कहानी के बीच में ही रोकते हुए कहा, “क्या रानी लक्ष्मीबाई इतनी ताकतवर थी?” दादी ने बताया, “खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी”।
हाँ बेटा, अपने बेटे को पीठ पर बांधकर वो एक वीर मर्द योद्धा की तरह घुड़सवार हो मैदान में पहुंच गई। उसके हाथ में एक चमकती तलवार थी। एक अंग्रेजी दूत रानी के पास आया और चेतावनी देने लगा, “लक्ष्मीबाई अभी भी वक्त है, झांसी हमें दे दो”। लक्ष्मीबाई ने एक वीरांगना की तरह उत्तर दिया, “जब तक मैं जिंदा हूं, मेरी झांसी को कोई छू भी नहीं सकता। मैं झांसी नहीं दूंगी।”
इतना कहकर घमासान युद्ध शुरू हो गया। रानी की तलवार रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। रानी को अंग्रेजो ने घेर लिया था। लेकिन रानी ने हिम्मत नहीं हारी और घोड़े पर सवार हो दोनों हाथों से तलवार चलाने लगी। रानी घायल हो गई थी लेकिन रानी की तलवार नहीं रुकी। अचानक से एक अंग्रेज सैनिक ने रानी पर पीछे से तलवार से वार कर दिया और रानी घोड़े से नीचे गिर गई। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई वीरगति को प्राप्त हो गई। रानी के पार्थिव शरीर के पास खड़े होकर, सभी अंग्रेजी ने रानी की वीरता को सैल्यूट करा।
प्रिया और राज के सवाल जवाब
कहानी सुनाते सुनाते दादी की आंखे नम हो गई। तभी प्रिया ने पूछा, “दादी माँ क्या रानी लक्ष्मीबाई के पास कोई मैजिकल तलवार थी?” दादी माँ उसकी मासूमियत पर हंस पड़ीं और जवाब दिया, “बिटिया उसके पास कोई मैजिकल तलवार नहीं थी, लेकिन उसकी बहादुरी ही उसका सबसे बड़ा शस्त्र था।” तो दादी माँ उन्होंने अकेले अंग्रेजों से टक्कर कैसे ली? राज ने पूछा। दादी ने बताया कि उसके भीतर एक शेरनी जैसा दिल था। वह अंग्रेजो पर गरज रही थी और उन्हें मात दे रही थी। वह इतनी ज्यादा साहसी थी।
प्रिया और राज दोनों ही रानी लक्ष्मीबाई से बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने सीखा कि वे भी छोटी आयु में, बहादुर और साहसी हो सकते है, जैसे कि दादी माँ की कहानी में झांसी की रानी थी। इस कहानी से न केवल उनका मनोरंजन हुआ बल्कि उन्होंने देश प्रेम, साहस और संघर्ष के बारे में मूल्यवान शिक्षा ली।
Very nice story maine aapne beti ko sunaya … Use bahut acha lga
Thank you!