Father Story in Hindi | Pita Ki Mehnat aur tyag ki kahani
दृश्य सूची
पिता और परिवार का परिचय
छोटे से गांव के कच्चे घर में चंपक नाम का एक गरीब किसान रहता था। चंपक की पत्नी का देहांत कुछ साल पहले हो चुका था। उसकी जिंदगी कठिनाइयों से भरी हुई थी, लेकिन उसकी दुनिया उसके दो बेटों, रवि और अमन के इर्द-गिर्द ही घूमती थी। उसने अपने बच्चों के लिए सिर्फ पिता ही नहीं, बल्कि एक मां की भूमिका भी निभाई थी। परेशानी भरी जिंदगी में उसकी बस एक ही इच्छा थी उसके बेटे पढ़-लिखकर बड़े आदमी बने और अपने जिंदा रहते वह, उनकी सफलता देख सके।
चंपक की गरीबी और बेबसी
चंपक के पास छोटी सी ज़मीन का टुकड़ा था, जिसमें वो मेहनत करके खेती करता था। खुद पुराने, फटे हुए कपड़ों में घूमता रहता, लेकिन बेटों की फीस, किताबों के लिए उसने कभी कोई कमी नहीं आने दी। चंपक न जाने कितनी रातें भूखा भी सोया, लेकिन हमेशा बच्चों को पेट भर खाना खिलाया। बच्चों की परवरिश में कोई कमी नहीं रखता। जब वह गर्मियों की तपती दोपहर में खेतों में पसीना बहाता, तो बस यह सोचकर खुश हो जाता, एक दिन उसकी मेहनत और त्याग रंग लायेंगे, उसने जो सपने अपने परिवार के लिए देखे हैं, उन्हें उड़ान जरूर मिलेगी।
शहर की चकाचौंध में खोए रवि और अमन
समय बीतता गया। रवि और अमन अपनी कॉलेज की पढ़ाई करने शहर चले गए। चंपक को बेटों की चिंता होती थी, कि न जाने बड़े शहर में बच्चे अपना ख्याल सही से रख पाएंगे या नहीं। शहर की चकाचौंध में रवि और अमन इतना डूब गए थे कि उन्हें गांव की वो सादा जिंदगी और पिता का किया हुआ त्याग छोटा लगने लगा था।
उन्होंने पिता के फोन कॉल को इग्नोर करना शुरू कर दिया था। चंपक जब भी बेटों को फोन करता, तो उसे एक के बाद एक बहाने मिलते, “पापा मैं अभी मीटिंग में हूं, किसी बड़े प्रोजेक्ट के चलते बिजी हूं, बाद में बात करूंगा।” चंपक बेटों के इस व्यवहार से दुखी था, लेकिन फिर अपने मन को समझा लेता, की बच्चे अब नौकरी करते हैं, व्यस्त तो रहेंगे ही।
ढलती उम्र में बेसहारा चंपक
चंपक अपनी उम्र के अब उस पड़ाव पर आ चुका था कि उसकी सेहत ठीक नहीं रहती थी। खेतों में काम करना भी मुश्किल हो चुका था। हिम्मत होती तो खाना बना लेता वरना ऐसे ही भूखा सो जाता। उसे बस एक ही उम्मीद थी, की बेटे जब अच्छे से सेटल हो जायेंगे, तब मैं चैन की सांस लूंगा।
एक दिन ऐसा आया, वह बिस्तर से उठ नहीं पाया। दर्द से कराहते हुए उसने रवि को फोन किया, “बेटा रवि मेरी तबीयत बहुत खराब है, तुम एक दिन की छुट्टी लेकर गांव आ जाओ।” रवि ने कहा, “पापा मुझे ऑफिस में बहुत काम है, छुट्टी मिलना तो मुश्किल है। आप डॉक्टर को बुला कर दिखा लो।” चंपक की आंखे नम थी। उसने एक उम्मीद के साथ अमन को फोन लगाया, लेकिन अमन ने भी कहा, “पापा मैं बिजनेस ट्रिप पर शहर से बाहर आया हुआ हूं, अभी नहीं आ सकता।” चंपक की आँखों से आँसू बहने लगे। उसे अपने बेटों से कोई शिकायत नहीं थी। उसे पता था कि अब उसके पास गिने चुने दिन ही बचे हैं। उसने फिर कभी रवि और अमन को फोन नहीं किया।
आखिरी इच्छा और पिता का देहांत
कुछ दिनों बाद रवि और अमन के पास गांव से एक पड़ोसी का फ़ोन आया। उसने बताया कि अब उनके पिता इस दुनिया से चल बसे है। दोनों को सुन कर एक झटका लगा। वे तुरंत गांव के लिए निकल पड़े, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। पिता का अंतिम संस्कार हो चुका था। पड़ोसी ने बताया, “तुम्हारे पिता आखिरी समय तक तुम्हें याद करते हुए बोलते रहे कि मेरे बेटे इतना समय तो निकालकर आ जायेंगे कि वो मुझे कंधा दे सके, लेकिन अफ़सोस उनकी आखिरी इच्छा भी पूरी नही हो सकी।” ये सब सुनकर रवि और अमन फूट-फूट कर रोने लगे।
बेटों को हुआ गलती का एहसास
घर के एक कोने में रखी चंपक की पुरानी चप्पल, फटे हुए कपड़े और धूल में सना कमरा रवि और अमन को एहसास दिला रहा था, कि उनकी हर खुशी के लिए उनके पिता ने अपनी जिंदगी का हर सुख त्याग दिया था। जहां उनके पिता आखिरी सांस ले रहे थे, उस जगह बैठकर दोनों को अपनी गलती का एहसास हुआ, कि उन्होंने अपने पिता के त्याग की कीमत कभी समझी ही नहीं। रवि और अमन की आंखों से झर-झर आंसू बह रहे थे। उन्होंने समझा कि उनके पिता का किया हुआ हर त्याग सिर्फ उनके लिए ही था, और उस त्याग की कदर करना वो भूल गए थे। उन्होंने महसूस किया की उन्होंने सब कुछ पाते हुए भी सब खो दिया।
कहानी से सीख:
यह कहानी सिर्फ चंपक की नहीं, हर उस पिता की है, जो अपने बच्चों के लिए अपनी जिंदगी का हर सुख चैन त्याग देता है। पिता का त्याग अनमोल होता है, और हमें उस त्याग की समय रहते कदर कर लेनी चाहिए।